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सौतेला बाप ( भाग - 3)

अध्याय - ३ 

" अच्छा ना किए तुम पण्डित बाबा को नाराज़ करके दुलहा, ऊ तो भगवान के बाद आते है। सबका पाप पुण्य ऊही तो देखत है।" गबरू घबराया सा सौतेले बाप को देख बोला।मगर सौतेला बाप उल्टा उसे ही समझाने लगा -" ये सब कुछ नहीं होता ,और पाप वो होता है जब हम किसी को ख़ुद से नीचा दिखाए।" 

" नीची जाति का है ई।साध - असाध किसी का विचार है इसे कि नहीं दुलहा ले आया तो आ गया उंगली पकड़े।" गांव के लोग गबरू को दोषी ठहराते हुए बोले।गबरू को अब और घबराहट हो रही थी वहां मधुआ भी अपने मित्रों की सच्ची बोली को सुन - सुना कर आ गया था और अपनी माई के कोठर के सामने खड़ा होता हुआ धीरे से फुसफुसाया -" माई! माई! खिड़की खोलो ,देखो तो।" 

" का हुआ मधुआ , काहे पुकार रहा अपनी माई को?" एक लड़की कोठर से झांकती हुई बोली । 

मधुआ - " माई को बुलाओ ,तू का कर रही हमरे घर में झुमरी तुमको तो हम मना किए थे ना हमारे घर के आस - पास भी फटकने को ,काहे आई ।" 

झुमरी हैरानी से अपने ठोड़ी को पकड़े बोली - " काहे रे मधुआ हम का बिगाड़े तेरा जो हमको बोल रहा?" 

" तुम्हारे लक्षन ठीक ना है , सबही जानत है। नाके का छगनुआ तुम्हे देख सलीमा का गीत गाता है जिसका मतलब है तुम्हारा तिरिया - चरीत्तर कछु नेक ना है।" 

छगन गांव का एक सबसे बदनाम नवयुवक माना जाता था जिसे कुछ याद रहे या ना रहे सलीमा के गीत बखूबी याद थे , गांव के बीचों बीच बने अखाड़े में कुश्ती प्रतियोगिता देखना फिर खत्म होने के बाद वहीं चाय के टपरी पर बैठ बाजार में आती जाती लड़कियों को देख वही गीत गाना।अभी हाल फिलहाल में जब झुमरी अपनी सहेली रूपा के साथ राशन पताई का सामान लेने बाजार गई थी और आते वक्त छगन ने उसकी सहेली रूपा को देख सलीमा का एक मधुर प्रेम गीत गा दिया। फिर क्या रूपा का घर से निकलना छूट गया और वैसा ही हुआ झुमरी के साथ मगर झुमरी उसके गीत पर मुस्कुरा दी फिर तो अब पूरा गांव समझता था झुमरी के चाल चलन ठीक ना है।कोई औरत अपनी लड़की को झुमरी से बात करने ना देती।मगर झुमरी का क्या कसूर था जो उससे लोग यूं दूर होते चले जा रहे थे। मधुआ के दिमाग में ये बात वहीं गांव की औरते डाली थी  जिन्होंने अपने मर्दों को ये उपाय बताया था कि मधुआ की माई का दूजा ब्याह करवा दो वरना बाली उम्र की छोकरी है गांव के लडको का मन डोल गया और कोई ऊंच - नीच हो गई तो , उससे पहले किसी बाहरी को देख बसा दो घर।पति के छत्र - छाया में बीता देगी अपना जीवन।और मधुआ का सौतेला बाप बिना दहेज़ के विवाह के लिए मान गया क्योंकि वो विधवा हैं ।तो लो बन गई बात बिना दहेज़ के गांव में रहेगा यही तो चाहिए था सबको। 

गुस्से में झुमरी बोली -" किसने सिखाई जे बात तुझे मधुआ?" 

" तेरी पड़ोस वाली चाची ,जिसके इंहा तू आलता लेने जाती है।" 

" भाग इंहा से ना मिल सकता अपनी माई से तू।" इतना बोल झुमरी ने कस के खिड़की के पल्ले बंद कर दिए और मधुआ वहीं अपनी व्यथा लिए खड़ा रहा।सौतेला बाप गबरू के साथ वहीं खटोला बिछा देता है और बैठ जाता है उसने गबरू को भी पूछा था अपने साथ बैठने को मगर अपने आस पास लोगो को देख गबरू ने मना कर दिया।सभी वहीं अपने सिर पर हाथ धरे बैठे रहे , माहौल शादी - विवाह का कम मातम का ज्यादा प्रतीत हो रहा था।सभी बस आने वाले संकट का इंतजार कर रहे थे। 

" कोई तो जाओ पण्डित बाबा को लियाने ,उनके बिना बियाह कैसे होगा?" एक गठीले कद - काठी का नवयुवक सबको देख बोल पड़ा वही था उस गांव का सबसे नकारा!नालायक! छगन जिससे रोज़ कोई बात करे ना करे मगर मरनी से लेकर शादी - विवाह में सभी सबसे पहले उसे ही न्योता देते क्योंकि वो और उसके साथी मिलकर सबकी मदद करते।तो आज भी वो इसी लिए आया था। 

" वो क्यों नहीं आएंगे हमारी शादी में?" सौतेले बाप ने आश्चर्य से पूछा। 

गांव के एक व्यक्ति ने विकृत भाव से बोला -" इतना बड़ा पाप करके पूछ रहे क्यों ना आवेंगे पण्डित बाबा।अरे हम तो सोच रहे, का काल सवार हो गया था कपार पे तोहरे जो इको ले आए साथ में ,ले आते खटोला बस तो का बिगड़ जाता तोहार बाबू।" 

सौतेला बाप समझाते हुए बोला -" इसमें ना हमारी गलती है ना इनकी गलती , गलत बात की है। हम समझाएंगे पण्डित बाबा को।" सौतेला बाप अपनी जगह से उठा और पण्डित बाबा के घर के लिए निकलने वाला ही था की गांव के लोग जल्दबाजी में उठते हुए बोलें -" ना! इससे अच्छा मधुआ आ जाए ,समाज की सूझ - बूझ तो है उमे।" 

उनकी बात सुन वहीं पर आता मधुआ दांत चिआरते हुए उनके पास आ खड़ा हुआ। मधुआ का सौतेला बाप ये सुनते ही वापस खटोले पर धम्म से बैठ गया -" समाज की समझ नहीं , कुरीतियां मन में भर दी गई है इस मासूम के।" 

" देखो तुम ना बताओ हमे ,अब जा रहे है हमी लोग पण्डित बाबा को मनाने अरे... बियाह का वक्त निकल जायेगा मगर कउनो तैयारी ना हो पावेगी चलो जल्दी से सब चूल्हा जलाओ ,और हां जा छगनवा भीतर से कोहड़ा ले आ काट ले सब मिल के फिर तरकारी बनेगी ,तब तक औरते मिल जुल के अपना बतिआवत के आटा सानेंगी।" 

सभी तुरंत अपने - अपने काम में जुट गए कोई घर को सजाने लगा , सामने के दीवाल पर कुमकुम और आटे के घोल से तरह - तरह की फूल पत्तियां बनने लगी।सामने का आंगन जहां विवाह होने को था लीपा - पोता रहा था ,चूल्हे पर कढ़ईया चढ़ चुकी थी। आलू और बाकी चीजों के बोरे खुल चुके थे। गांव के सभी नवयुवक बाहरी काम देख रहे थे और औरते घर के भीतर ही आटा सान रही थी ,हंसी - ठिठोली की आवाज़ें दुबारा से आने लगी , ब्याह के गीत जिसे वो सोहाग और बन्ने के गाने कहती थी , गाए जा रहे थे।कुछ लोग अपने - अपने घर से बिछौने और मिट्टी के तेल से जलने वाला डेबरी ला चुके थे। रात के लिए मंडप में बास चढ़ चुका था , लकड़ी के सुग्गे जिन्हे शुभ माना जाता था वहीं बास में लग गए थे।गांव के बच्चे इधर - उधर खेल रहे थे सिवाय मधुआ के वो तो अपने सौतेले बाप के आगे पीछे घूम रहा था , उसकी असलियत जानने को।

कहानी जारी है , बने रहे मेरे साथ इस कहानी को जानने के लिए। 

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9 Comments

RISHITA

06-Aug-2023 10:03 AM

Awesome

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Khan

05-Nov-2022 06:03 AM

Behtreen likha hai aapne

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Mahendra Bhatt

04-Nov-2022 11:07 AM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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